Monday, 6 February 2017

प्रश्न :- मौन साधना किस प्रकार की जाती है ? उसका क्या महत्व है ?


प्रश्न इस पार से , उत्तर उस पार से

(ध्यान गुरु अर्चना दीदी द्वारा साधकों को दिए गए प्रश्नों का उत्तर)

प्रश्न :- मौन साधना किस प्रकार की जाती है ? उसका क्या महत्व है ?

उत्तर :- आध्यात्मिक प्रगति में इच्छुक साधक के लिए साधना बहुत महत्वपूर्ण है | मौन के माध्यम से हम अपने भीतर की शक्तियों को जागृत करते हैं तथा उस परम अज्ञात सत्ता से जुड़ते हैं |

हमारी ऊर्जा हमेशा बाहर की ओर प्रवाहित होती है, हमारी शक्तियाँ तथा क्षमताएँ बाहरी रहती हैं, इन शक्तियों को एकत्रित कर भीतर की ओर मोड़ने में मौन साधना अत्यन्त लाभकारी है | साधारण रूप से मौन से व्यक्ति का तात्पर्य होता है – वाणी का मौन | अनेक लोग इस प्रकार कुछ अवधि के लिए मौन धारण कर लेते हैं किंतु साथ ही उस अवधि में लिख कर अथवा संकेतों से अन्य व्यक्तियों से वार्तालाप एवं कार्य करते रहते हैं| यह मौन की उचित विधि नही है | मौन का वास्तविक अर्थ है – मन एवं वाणी दोनों से मौन हो जाना | जब मन में विचारों की तरंगे भी शांत होने लगे तथा साधक भीतर के संसार में , भीतर के शून्य में प्रवेश करने लगे तभी वास्तविक मौन घटित होता है | जब यह मौन घटित होता है, तब अनेक रहस्य उद्घाटित  होने लगते हैं, भीतर की संभावनाएँ जागृत होने लगती हैं |

किंतु वाणी के मौन से प्रारम्भ किया जा सकता है, धीरे धीरे मन का, विचारों के मौन का प्रयास करना चाहिए | किंतु सदैव सद्गुरु से मार्गदर्शन प्राप्त कर, उनका आशीर्वाद प्राप्त कर ही इसमें बढ़ने का प्रयास करना चाहिए | उनकी आज्ञा तथा दिशा निर्देशन से ही किसी प्रकार की साधना फलित हो सकती है |

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