ध्यान है – एक अनुभव
भारत देश का अध्यात्म, ज्ञान, ध्यान,
मनोविज्ञान एवं जीवन दर्शन संपूर्ण विश्व में सदा से ही वन्दनीय, एवं आदरणीय रहा
है | हमारे ऋषि-मुनियों, योगियों, तपस्वियों, महापुरषों ने साधना के उपरान्त जो
ज्ञान प्राप्त किया, जो अनुभूतियाँ, जो उपलब्धियाँ प्राप्त की, वे उनकी चेतना के
उच्चतम स्तर की परिचायक है | हमारे ग्रन्थ, शास्त्र एवं पुस्तकें आदि उस
आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण है | वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, पुराण आदि ग्रंथों में
आत्मा-परमात्मा, अध्यात्म विधा, जीवन दर्शन आदि विषयक उच्च ज्ञान अकिंत है | इन
ग्रंथों का पठन, मनन, चिन्तन, अध्ययन आदि हमें संकेत देता है कि जो संसार हमें
स्थूल आँखों से दिखाई देता है, उससे परे भी एक संसार है, रहस्यात्मक संसार है | हम
शरीर नहीं, आत्मा है | हमारी यात्रा इस स्थूल शरीर की नहीं, आत्मा अनश्वर है, अनादि
है | यह भारतवर्ष का गूढ़ ज्ञान है, अध्यात्म है,दर्शन है |
किंतु
महत्वपूर्ण है – कि हमें इन विषयों का शाब्दिक ज्ञान हो जाए, पुस्तकीय ज्ञान हो
जाए, यह पर्याप्त नहीं है | शाब्दिक ज्ञान हमारी चर्चा का विषय हो सकता है, अहंकार
का विषय हो सकता है किंतु हमें अनुमति नहीं दे सकता | हम कितना भी प्रयास कर लें,
हम शरीर के स्तर पर ही रहते हैं, आत्मा के स्तर पर नहीं जा सकते | हम कितना ही
ग्रंथों का अध्ययन कर लें, आत्मा परमात्मा विषयक पुस्तकें पढ़ लें, उससे हमें
आत्मबोध नहीं हों सकता | वह मात्र पुस्तकीय ज्ञान है,शब्द है |
आत्मा के स्तर पर पहुँचने का केवल और केवल एक ही मार्ग है – वह है ध्यान,
भक्ति, जप-तप | ध्यान ही भीतर का मार्ग प्रशस्त करता है, स्थूल शरीर से सूक्ष्म
शरीर एवं आत्मा तक की यात्रा का मार्ग खोलता है | पुस्तकीय ज्ञान को अनुभूति में
लाने का एक ही माध्यम है –ध्यान |
कल्पना कीजिये कि आप भोजन के विषय में,
खाद्य पदार्थो के विषय में, पाचन क्रिया के विषय में, स्वादिष्ट व्यंजन के विषय
में बहुत सी पुस्तकें पढते है | किंतु न तो व्यंजन बनाते है, न ही ग्रहण कर पा
रहें है, न ही स्वाद का आनंद ले पाएगें | पुस्तके पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है,
महत्वपूर्ण है कि पुस्तकों में अकिंत शब्द आपके अनुभव में आ जाये | मिष्ठान के
विषय में पढ़ने से आपको संकेत तो मिल सकता है किंतु यदि मिष्ठान का स्वाद लेना
चाहते है तो खाये बिना नहीं हों सकता | तभी वह आपका अनुभव बनता है | यदि तथ्य
प्रत्येक विषय के लिए है |
आध्यात्मिक उन्नति भी तभी सम्भव है जब ग्रंथों
का गूढ़ ज्ञान ध्यान के माध्यम से आपके भीतर उतर आए | यदि पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त
कर आप उसका प्रयोग स्वयं को ज्ञानी प्रदर्शित करने में करते है, तो वह आपको
अहंकारी बना देगा, उससे आपकी आध्यात्मिक उन्नति नहीं अपितु पतन होता है | हमारे
आध्यात्मिक ग्रंथो में में अकिंत ज्ञान हमारे आत्मोत्थान के लिए है, पतन के लिए
नहीं | उस ज्ञान को अनुभव में लाने के लिए आवश्यक है – ध्यान में प्रवेश | ध्यान
द्वारा भीतर की यात्रा करते करते हम अनुभूतियों के लोक में प्रवेश करते है | जैसे
जैसे हमारा ह्रदय पवित्र होता जाता है, हम ध्यान में प्रवेश करते जाते है, हमारे
समक्ष सूक्ष्म लोकों के द्वार खुलते चले जाते है | और हम आश्चर्य से भर जाते है कि
आत्मा का, परमात्मा का लोक कितना सौंदर्यपूर्ण, रसपूर्ण एवं आनंदपूर्ण है |
किंतु ध्यान में प्रवेश होता है –सद्गुरु की
कृपा से, उनके आशीर्वाद एवं उनकी अनुकम्पा से | ध्यान का क्षेत्र वह क्षेत्र है
जिसमे साधक के प्रयास नहीं, सद्गुरु की कृपा कार्य करती है | साधक का प्रयास मात्र
इतना ही होना चाहिए कि सद्गुरु के प्रति उसका समर्पण, उसकी श्रद्धा एवं निष्ठा
शत-प्रतिशत हो |
जैसे ही वह एक योग्य शिष्य, योग्य साधक बन
जाता है, सद्गुरु की कृपा का द्वार खुल जाता है तथा वह ध्यान के दिव्य लोक में
प्रवेश कर उतरोत्तर उन्नति करता चला जाता है | फिर ग्रंथो का ज्ञान, आत्मा,
परमात्मा, सूक्ष्म संसार, चक्र रहस्य आदि उसके लिए शब्द मात्र नहीं रह जाते |
अपितु उसके अनुभव में आ जाते है | जीवन का नया अध्याय प्रांरभ हों जाता है | ईश्वर
करे कि आप सभी के जीवन में वास्तविक ध्यान एवं अध्यात्म प्रवेश कर सके तथा आप एक
अच्छे इंसान, अच्छे साधक बनकर जीवन को सार्थक कर सके |
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