Saturday, 3 September 2016

“वह” हमें देख रहा है

                 


                                  “वह”  हमें देख रहा है

     व्यक्ति के जीवन की एक-एक श्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है | श्वासों की उपमा बहुमूल्य रत्नों से दी जाए तो अतिश्योक्ति न होगी | हर श्वास एक अमूल्य रत्न है और यह जीवन रत्नों की खान है | किंतु संसार में कितने लोग है जो इसका महत्व समझ पाते है | हम में से कितने व्यक्ति है, जो जीवन के उद्देश्य के प्रति सजग है ? सजग रहना तो दूर की बात है, संसार में बहुत कम लोग होते है जिन्हें अपने जीवन के उद्देश्य का बोध होता है अन्यथा अधिकाशत: लोगों का जीवन निरूद्देश्य ही बीत जाता है | और यह उस परमात्मा के जीवन रूपी उपहार का सबसे बड़ा निरादर है |
         उस परमात्मा ने, परम शक्ति ने हमें यह जीवन दिया, अनमोल श्वासों की पूंजी दी और अनंत संभावनाएं एवं क्षमताएँ प्रदान की | यह जीवन एक विशेष उद्देश्य के लिए मिला है, आत्म विकास के लिए,  आत्म उन्नति के लिए, पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर एवं मनुष्यत्व से देवता की ओर अग्रसर होने के लिये मिला है | अन्धकार से प्रकाश की ओर आरोहण के लिए मिला है | इस जीवन का एक-एक श्वास अनमोल है और इसके एक-एक श्वास के लिए हम उतरदायी है | हम स्वंय अपने भाग्य निर्माता है अपनी वर्तमान एवं भविष्य की स्थितियों के लिए हम जिम्मेदार है, उत्तरदायी है | प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा हमें जीवन में अनेक अवसर प्राप्त होते है किंतु जो सजग है, होश में है, वे ही इन अवसरों का लाभ उठा पाते है अन्यथा मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है, वह इन अमूल्य श्वासों का मूल्य समझ ही नहीं पाता | किंतु ध्यान रखना कि परमात्मा को, जिसने हमें यह जीवन दिया है, एक दिन हमें उस परमात्मा को उत्तर देना होगा कि हमनें इस जीवन में क्या किया | एक-एक श्वास जो उसने हमें दी, उसके प्रति हम उतरदायी है क्योंकि यह जीवन हमारा नहीं है, उस परम शक्ति द्वारा हमें दिया गया है, विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिया गया है |
       जिस प्रकार एक पिता जब अपनी संपति, अपनी सन्तान को देता है तो एक-एक पैसे का हिसाब मांगने का अधिकार रखता है | यदि वह देखता है कि सन्तान योग्य है, उसे उस संपति के महत्व का बोध है तो वह प्रसन्न होकर सहर्ष और अधिक संपति देने का इच्छुक होता है | किंतु यदि पिता देखे कि सन्तान अयोग्य है, उसे पिता द्वारा दी गयी संपति की कद्र नहीं है तथा वह उसे संभालने में असमर्थ है तो फिर पिता उसे और अधिक देने का इच्छुक नहीं होता | इसी प्रकार जब परमात्मा देखता है, कि हम उसके द्वारा दिए गए श्वासों का मूल्य समझते है, एक-एक श्वास का सदुपयोग करना जानते है, जीवन में सद्गुण अर्जन, उतरदायित्व एवं एक-एक श्वास के प्रति सजग है तो वह हमें बार-बार मनुष्य जीवन देकर आत्मोन्नति की संभावनाएं प्रदान करता है | किंतु यदि व्यक्ति इन श्वासों का मूल्य ना समझे, निरुद्देश्य होकर जीवन को व्यर्थ गंवा दे तथा पतन की धरोहर है, हमारी हर श्वास पर उसका ही अधिकार है, वह स्वामी है, हम उसके सेवक है |
अत: अपने जीवन के हर क्षण, हें कार्य के लिए हम उत्तरदायी है | जिसे इस तथ्य का बोध हो जाता है,  वह अपने जीवन के एक भी श्वास को व्यर्थ नहीं जाने देता |
    प्रत्येक कर्म करने से पूर्व सोचता है कि वह परमात्मा मुझे देख रहा है, वह विचार करता है कि मेरे इस कार्य से परमात्मा प्रसन्न होगा अथवा रुष्ट होगा | ऐसा व्यक्ति सदा सुकर्म करता हुआ जीवन को सार्थक होता चला जाता है | वह अपनी आत्मा में उस परमात्मा की ध्वनि मून पाता है, वह अपने दायित्वों को गम्भीरता से निभाता है तथा भीतर से प्रसन्न व संतुष्ट रहता है | उसकी आँखों में चमक होती है, मुखमंडल पर शांति, उत्साह एवं संतुष्टि के भाव होते है | और यही जीवन जीने की कला है | अत: सदा यह बोध रखें कि हर पर, हर क्षण हमारे सद्गुरु, हमारा परमात्मा हमें देख रहा है की मेरा शिष्य, मेरा भक्त कितना योग्य है, उतरदायी है, जीवन की पूंजी के प्रति कितना सजग है | यदि यह बोध हो जाए तो व्यक्ति कभी अनुचित कार्य कर ही नहीं सकता, अधर्म नहीं कर सकता | अपितु वह जीवन के हर क्षण, हर पल में वह चेष्टा, वह कार्य करने का प्रयास करता है कि सद्गुरु व ईश्वर कैसे प्रसन्न हों | उनकी प्रसन्नता प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील हों जाता है और अपने जीवन को सार्थक कर लेता है |

                          

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