सन्मार्ग
व्यक्ति का जीवन एक यात्रा
की भांति है जिसमे अग्रसर होते होते सभी ऐसे क्षण आते है जब हम दौराहे अथवा चौराहे
पर आकर खड़े हो जाते हैं | असमंजस में पड़कर सोचने लगते है कि किस राह पर कदम रखे,
किस दिशा में प्रस्थान करें कि अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें | मन तथा मस्तिष्क
में एक द्वंद होता है – एक पक्ष एक मार्ग की बाधाएँ, कठिनाइयाँ तथा परिणाम सामने
रखता है तो दूसरा पक्ष दूसरे मार्ग की आकर्षक छवि व आयाम दिखाता है | एक मार्ग
उन्नति की ओर, प्रकाश की ओर ले जाने वाला होता है किंतु दिखने में दुर्गम प्रतीत
होता है |
दूसरा मार्ग अवनति की ओर,
अंधकार की ओर ले जाने वाला होता है किंतु अत्यंत सरल लगता है | प्रकाश का मार्ग
अनुशासन, कर्मठता, नियंत्रण, उदारता, प्रेम, त्याग का मार्ग है तो अन्धकार का
मार्ग आलस्य, प्रमाद, स्वार्थ एवं विषय भोग का मार्ग है |
आश्चर्यजनक विषय यह है कि
उन्नति का मार्ग अत्यंत नीरस एवं आकर्षणहीन होता है किंतु अवनति का मार्ग अत्यंत
आकर्षक व मोहक प्रतीत होता है | उसके आकर्षण में बंधा हुआ मनुष्य उस ओर खिंचा चला
जाता है, परिणाम का विचार किए बिना वह उस मार्ग पर अपने कदम बढ़ा देता है तथा उस
आकर्षण के भँवर में फसँता चला जाता है |
जो व्यक्ति अपनी आत्मा की,
अपनी चेतना की आवाज सुनकर उसे सम्मान देता है, वह सुमार्ग पर कदम बढ़ाता है तथा
उसका परिणाम सदैव कल्याणकारी होता है | इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने अन्त:करण की
आवाज को सुना-अनसुना कर देता है, वह कुमार्ग का पथिक बन जाता है तथा साथ ही उसके
कटु परिणाम के बंधन में बंध जाता है |
हमारे ग्रन्थों में प्रकाश
तथा अन्धकार के इन मार्गों को क्रमशः श्रेय तथा प्रेय मार्गो की संज्ञा दी गयी है
| प्रकाश का, उन्नति का मार्ग श्रेय अर्थात – श्रेष्ठ मार्ग है किंतु कठिन है |
अन्धकार का, अवनति का, मार्ग प्रेय अर्थात – प्यारा लगने वाला मार्ग है किंतु,
उसका परिणाम दुखदायी है | श्रेय मार्ग सृजन का, निर्माण का मार्ग है व प्रेय मार्ग
विध्वंस का मार्ग है | सद्गुरु व ईश्वर की कृपा से जब व्यक्ति के भीतर विवेक जागृत
हो जाता है तो वह सदा कल्याणकारी मार्ग का चयन करता है तथा यह विवेक, यह सद्बुधि
मिलती है सद्गुरु के सानिध्य से, सत्संगति से, सद्विचारों से |
ईश्वर करे कि हम सभी के
भीतर यह विवेकिनी शक्ति जागे कि हम सत्मार्ग का चयन कर उसके पथिक बन सकें तथा
कल्याण के पथ पर अग्रसर होकर जीवन को उन्नत करें |
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