Saturday, 3 September 2016

ध्यान है – एक अनुभव

             


                   ध्यान है – एक अनुभव


      भारत देश का अध्यात्म, ज्ञान, ध्यान, मनोविज्ञान एवं जीवन दर्शन संपूर्ण विश्व में सदा से ही वन्दनीय, एवं आदरणीय रहा है | हमारे ऋषि-मुनियों, योगियों, तपस्वियों, महापुरषों ने साधना के उपरान्त जो ज्ञान प्राप्त किया, जो अनुभूतियाँ, जो उपलब्धियाँ प्राप्त की, वे उनकी चेतना के उच्चतम स्तर की परिचायक है | हमारे ग्रन्थ, शास्त्र एवं पुस्तकें आदि उस आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण है | वेद, उपनिषद, गीता, रामायण, पुराण आदि ग्रंथों में आत्मा-परमात्मा, अध्यात्म विधा, जीवन दर्शन आदि विषयक उच्च ज्ञान अकिंत है | इन ग्रंथों का पठन, मनन, चिन्तन, अध्ययन आदि हमें संकेत देता है कि जो संसार हमें स्थूल आँखों से दिखाई देता है, उससे परे भी एक संसार है, रहस्यात्मक संसार है | हम शरीर नहीं, आत्मा है | हमारी यात्रा इस स्थूल शरीर की नहीं, आत्मा अनश्वर है, अनादि है | यह भारतवर्ष का गूढ़ ज्ञान है, अध्यात्म है,दर्शन है |
    किंतु महत्वपूर्ण है – कि हमें इन विषयों का शाब्दिक ज्ञान हो जाए, पुस्तकीय ज्ञान हो जाए, यह पर्याप्त नहीं है | शाब्दिक ज्ञान हमारी चर्चा का विषय हो सकता है, अहंकार का विषय हो सकता है किंतु हमें अनुमति नहीं दे सकता | हम कितना भी प्रयास कर लें, हम शरीर के स्तर पर ही रहते हैं, आत्मा के स्तर पर नहीं जा सकते | हम कितना ही ग्रंथों का अध्ययन कर लें, आत्मा परमात्मा विषयक पुस्तकें पढ़ लें, उससे हमें आत्मबोध नहीं हों सकता | वह मात्र पुस्तकीय ज्ञान है,शब्द है |
          आत्मा के स्तर पर पहुँचने का केवल और केवल एक ही मार्ग है – वह है ध्यान, भक्ति, जप-तप | ध्यान ही भीतर का मार्ग प्रशस्त करता है, स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर एवं आत्मा तक की यात्रा का मार्ग खोलता है | पुस्तकीय ज्ञान को अनुभूति में लाने का एक ही माध्यम है –ध्यान |
     कल्पना कीजिये कि आप भोजन के विषय में, खाद्य पदार्थो के विषय में, पाचन क्रिया के विषय में, स्वादिष्ट व्यंजन के विषय में बहुत सी पुस्तकें पढते है | किंतु न तो व्यंजन बनाते है, न ही ग्रहण कर पा रहें है, न ही स्वाद का आनंद ले पाएगें | पुस्तके पढ़ना ही पर्याप्त नहीं है, महत्वपूर्ण है कि पुस्तकों में अकिंत शब्द आपके अनुभव में आ जाये | मिष्ठान के विषय में पढ़ने से आपको संकेत तो मिल सकता है किंतु यदि मिष्ठान का स्वाद लेना चाहते है तो खाये बिना नहीं हों सकता | तभी वह आपका अनुभव बनता है | यदि तथ्य प्रत्येक विषय के लिए है |
     आध्यात्मिक उन्नति भी तभी सम्भव है जब ग्रंथों का गूढ़ ज्ञान ध्यान के माध्यम से आपके भीतर उतर आए | यदि पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त कर आप उसका प्रयोग स्वयं को ज्ञानी प्रदर्शित करने में करते है, तो वह आपको अहंकारी बना देगा, उससे आपकी आध्यात्मिक उन्नति नहीं अपितु पतन होता है | हमारे आध्यात्मिक ग्रंथो में में अकिंत ज्ञान हमारे आत्मोत्थान के लिए है, पतन के लिए नहीं | उस ज्ञान को अनुभव में लाने के लिए आवश्यक है – ध्यान में प्रवेश | ध्यान द्वारा भीतर की यात्रा करते करते हम अनुभूतियों के लोक में प्रवेश करते है | जैसे जैसे हमारा ह्रदय पवित्र होता जाता है, हम ध्यान में प्रवेश करते जाते है, हमारे समक्ष सूक्ष्म लोकों के द्वार खुलते चले जाते है | और हम आश्चर्य से भर जाते है कि आत्मा का, परमात्मा का लोक कितना सौंदर्यपूर्ण, रसपूर्ण एवं आनंदपूर्ण है |
     किंतु ध्यान में प्रवेश होता है –सद्गुरु की कृपा से, उनके आशीर्वाद एवं उनकी अनुकम्पा से | ध्यान का क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसमे साधक के प्रयास नहीं, सद्गुरु की कृपा कार्य करती है | साधक का प्रयास मात्र इतना ही होना चाहिए कि सद्गुरु के प्रति उसका समर्पण, उसकी श्रद्धा एवं निष्ठा शत-प्रतिशत हो |  

     जैसे ही वह एक योग्य शिष्य, योग्य साधक बन जाता है, सद्गुरु की कृपा का द्वार खुल जाता है तथा वह ध्यान के दिव्य लोक में प्रवेश कर उतरोत्तर उन्नति करता चला जाता है | फिर ग्रंथो का ज्ञान, आत्मा, परमात्मा, सूक्ष्म संसार, चक्र रहस्य आदि उसके लिए शब्द मात्र नहीं रह जाते | अपितु उसके अनुभव में आ जाते है | जीवन का नया अध्याय प्रांरभ हों जाता है | ईश्वर करे कि आप सभी के जीवन में वास्तविक ध्यान एवं अध्यात्म प्रवेश कर सके तथा आप एक अच्छे इंसान, अच्छे साधक बनकर जीवन को सार्थक कर सके |       

YOGA AND MEDITATION



YOGA AND MEDITATION


Life is a miracle, and since we are created by the same Master Creator, we are all living, breathing miracles—examples of the infinite possibilities that are available to us.  Hence we should let go our worries, fears and doubts.  Divine miracles are all around us, and our trust in them will give us peace.
            When the pall of ignorance envelopes the inner self and the individual lose the sense of directions, his mind becomes numb and he loses his mental equilibrium.  He fails to differentiate between what is right and wrong.  He becomes aimless.  He is caught in the whirlpool of false believes and superstitions leading to observance of meaningless rituals.  Eventually, he sinks into the dark abyss.
            A musical instrument cannot play by itself, but in the hands of a master musician, it seems to come alive with beautiful, soul stirring music.  We ourselves are instruments through which the nature produces beautiful music, songs of peace and harmony for those around us to enjoy.
            How can a fallen man be resurrected? How does a human being come out of the darkness and proceed towards light to lead a meaningful life?  The technique is well taught by MEDITATION GURU ARCHNA DIDI. She explains and teaches on the subject that with constant practice, one learns to recognize the breath as a mental concept.  This constitutes attainment of knowledge capable of opening the door to the Almighty. Recently a workshop was held by her on ‘SHIVOHAM CHAKRAS MEDITATION’ at Sanatam Dharam Mandir, Lajpat Nagar, New Delhi, for four days.       
            DIDI’s yoga sessions include yoga practices, asnas, mudras, pranayama and body awareness, modernized for accessible use in all environments and abundant lifestyles.  All Yoga intents are welcomed to release daily stress and relax to deepen physical strength and flexibility or simply engaging life fully.  Her expertise includes the wisdom of self compassion through nurturing of mind, body and spirit.  Her experience enlivens the individual’s creativity, dynamism, orderliness and organizing power, which results in increasing effectiveness and success in daily life.

Meditation Sadguru Didi has very clearly brought out that we all should chase the dream, walk along a stream, laugh out loud, whistle a tune, whisper a promise, cherish a memory, lend a helping hand, wipe a tear and never fear.  Laugh uncontrollably and never regret things that made you not smile.   

“वह” हमें देख रहा है

                 


                                  “वह”  हमें देख रहा है

     व्यक्ति के जीवन की एक-एक श्वास अत्यंत महत्वपूर्ण है | श्वासों की उपमा बहुमूल्य रत्नों से दी जाए तो अतिश्योक्ति न होगी | हर श्वास एक अमूल्य रत्न है और यह जीवन रत्नों की खान है | किंतु संसार में कितने लोग है जो इसका महत्व समझ पाते है | हम में से कितने व्यक्ति है, जो जीवन के उद्देश्य के प्रति सजग है ? सजग रहना तो दूर की बात है, संसार में बहुत कम लोग होते है जिन्हें अपने जीवन के उद्देश्य का बोध होता है अन्यथा अधिकाशत: लोगों का जीवन निरूद्देश्य ही बीत जाता है | और यह उस परमात्मा के जीवन रूपी उपहार का सबसे बड़ा निरादर है |
         उस परमात्मा ने, परम शक्ति ने हमें यह जीवन दिया, अनमोल श्वासों की पूंजी दी और अनंत संभावनाएं एवं क्षमताएँ प्रदान की | यह जीवन एक विशेष उद्देश्य के लिए मिला है, आत्म विकास के लिए,  आत्म उन्नति के लिए, पशुत्व से मनुष्यत्व की ओर एवं मनुष्यत्व से देवता की ओर अग्रसर होने के लिये मिला है | अन्धकार से प्रकाश की ओर आरोहण के लिए मिला है | इस जीवन का एक-एक श्वास अनमोल है और इसके एक-एक श्वास के लिए हम उतरदायी है | हम स्वंय अपने भाग्य निर्माता है अपनी वर्तमान एवं भविष्य की स्थितियों के लिए हम जिम्मेदार है, उत्तरदायी है | प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा हमें जीवन में अनेक अवसर प्राप्त होते है किंतु जो सजग है, होश में है, वे ही इन अवसरों का लाभ उठा पाते है अन्यथा मनुष्य अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा देता है, वह इन अमूल्य श्वासों का मूल्य समझ ही नहीं पाता | किंतु ध्यान रखना कि परमात्मा को, जिसने हमें यह जीवन दिया है, एक दिन हमें उस परमात्मा को उत्तर देना होगा कि हमनें इस जीवन में क्या किया | एक-एक श्वास जो उसने हमें दी, उसके प्रति हम उतरदायी है क्योंकि यह जीवन हमारा नहीं है, उस परम शक्ति द्वारा हमें दिया गया है, विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए दिया गया है |
       जिस प्रकार एक पिता जब अपनी संपति, अपनी सन्तान को देता है तो एक-एक पैसे का हिसाब मांगने का अधिकार रखता है | यदि वह देखता है कि सन्तान योग्य है, उसे उस संपति के महत्व का बोध है तो वह प्रसन्न होकर सहर्ष और अधिक संपति देने का इच्छुक होता है | किंतु यदि पिता देखे कि सन्तान अयोग्य है, उसे पिता द्वारा दी गयी संपति की कद्र नहीं है तथा वह उसे संभालने में असमर्थ है तो फिर पिता उसे और अधिक देने का इच्छुक नहीं होता | इसी प्रकार जब परमात्मा देखता है, कि हम उसके द्वारा दिए गए श्वासों का मूल्य समझते है, एक-एक श्वास का सदुपयोग करना जानते है, जीवन में सद्गुण अर्जन, उतरदायित्व एवं एक-एक श्वास के प्रति सजग है तो वह हमें बार-बार मनुष्य जीवन देकर आत्मोन्नति की संभावनाएं प्रदान करता है | किंतु यदि व्यक्ति इन श्वासों का मूल्य ना समझे, निरुद्देश्य होकर जीवन को व्यर्थ गंवा दे तथा पतन की धरोहर है, हमारी हर श्वास पर उसका ही अधिकार है, वह स्वामी है, हम उसके सेवक है |
अत: अपने जीवन के हर क्षण, हें कार्य के लिए हम उत्तरदायी है | जिसे इस तथ्य का बोध हो जाता है,  वह अपने जीवन के एक भी श्वास को व्यर्थ नहीं जाने देता |
    प्रत्येक कर्म करने से पूर्व सोचता है कि वह परमात्मा मुझे देख रहा है, वह विचार करता है कि मेरे इस कार्य से परमात्मा प्रसन्न होगा अथवा रुष्ट होगा | ऐसा व्यक्ति सदा सुकर्म करता हुआ जीवन को सार्थक होता चला जाता है | वह अपनी आत्मा में उस परमात्मा की ध्वनि मून पाता है, वह अपने दायित्वों को गम्भीरता से निभाता है तथा भीतर से प्रसन्न व संतुष्ट रहता है | उसकी आँखों में चमक होती है, मुखमंडल पर शांति, उत्साह एवं संतुष्टि के भाव होते है | और यही जीवन जीने की कला है | अत: सदा यह बोध रखें कि हर पर, हर क्षण हमारे सद्गुरु, हमारा परमात्मा हमें देख रहा है की मेरा शिष्य, मेरा भक्त कितना योग्य है, उतरदायी है, जीवन की पूंजी के प्रति कितना सजग है | यदि यह बोध हो जाए तो व्यक्ति कभी अनुचित कार्य कर ही नहीं सकता, अधर्म नहीं कर सकता | अपितु वह जीवन के हर क्षण, हर पल में वह चेष्टा, वह कार्य करने का प्रयास करता है कि सद्गुरु व ईश्वर कैसे प्रसन्न हों | उनकी प्रसन्नता प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील हों जाता है और अपने जीवन को सार्थक कर लेता है |

                          

सन्मार्ग

                           

       सन्मार्ग


व्यक्ति का जीवन एक यात्रा की भांति है जिसमे अग्रसर होते होते सभी ऐसे क्षण आते है जब हम दौराहे अथवा चौराहे पर आकर खड़े हो जाते हैं | असमंजस में पड़कर सोचने लगते है कि किस राह पर कदम रखे, किस दिशा में प्रस्थान करें कि अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें | मन तथा मस्तिष्क में एक द्वंद होता है – एक पक्ष एक मार्ग की बाधाएँ, कठिनाइयाँ तथा परिणाम सामने रखता है तो दूसरा पक्ष दूसरे मार्ग की आकर्षक छवि व आयाम दिखाता है | एक मार्ग उन्नति की ओर, प्रकाश की ओर ले जाने वाला होता है किंतु दिखने में दुर्गम प्रतीत होता है |
दूसरा मार्ग अवनति की ओर, अंधकार की ओर ले जाने वाला होता है किंतु अत्यंत सरल लगता है | प्रकाश का मार्ग अनुशासन, कर्मठता, नियंत्रण, उदारता, प्रेम, त्याग का मार्ग है तो अन्धकार का मार्ग आलस्य, प्रमाद, स्वार्थ एवं विषय भोग का मार्ग है |
आश्चर्यजनक विषय यह है कि उन्नति का मार्ग अत्यंत नीरस एवं आकर्षणहीन होता है किंतु अवनति का मार्ग अत्यंत आकर्षक व मोहक प्रतीत होता है | उसके आकर्षण में बंधा हुआ मनुष्य उस ओर खिंचा चला जाता है, परिणाम का विचार किए बिना वह उस मार्ग पर अपने कदम बढ़ा देता है तथा उस आकर्षण के भँवर में फसँता चला जाता है |
जो व्यक्ति अपनी आत्मा की, अपनी चेतना की आवाज सुनकर उसे सम्मान देता है, वह सुमार्ग पर कदम बढ़ाता है तथा उसका परिणाम सदैव कल्याणकारी होता है | इसके विपरीत जो व्यक्ति अपने अन्त:करण की आवाज को सुना-अनसुना कर देता है, वह कुमार्ग का पथिक बन जाता है तथा साथ ही उसके कटु परिणाम के बंधन में बंध जाता है |
हमारे ग्रन्थों में प्रकाश तथा अन्धकार के इन मार्गों को क्रमशः श्रेय तथा प्रेय मार्गो की संज्ञा दी गयी है | प्रकाश का, उन्नति का मार्ग श्रेय अर्थात – श्रेष्ठ मार्ग है किंतु कठिन है | अन्धकार का, अवनति का, मार्ग प्रेय अर्थात – प्यारा लगने वाला मार्ग है किंतु, उसका परिणाम दुखदायी है | श्रेय मार्ग सृजन का, निर्माण का मार्ग है व प्रेय मार्ग विध्वंस का मार्ग है | सद्गुरु व ईश्वर की कृपा से जब व्यक्ति के भीतर विवेक जागृत हो जाता है तो वह सदा कल्याणकारी मार्ग का चयन करता है तथा यह विवेक, यह सद्बुधि मिलती है सद्गुरु के सानिध्य से, सत्संगति से, सद्विचारों से |

ईश्वर करे कि हम सभी के भीतर यह विवेकिनी शक्ति जागे कि हम सत्मार्ग का चयन कर उसके पथिक बन सकें तथा कल्याण के पथ पर अग्रसर होकर जीवन को उन्नत करें | 

संभावनाओं की जाग्रति

                         संभावनाओं की जाग्रति  



मानव परम सत्ता की वह सुन्दरतम कृति है जिसमें परमात्मा का सौंदर्य स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित होता है | मानव जीवन वह अमूल्य अवसर है , जिसमें विकास की अधिकतम संभावनाएं निहित हैं किंतु उन संभावनाओं को जागृत करना तथा अपने व्यक्तित्व को पूर्णरूपेण विकसित करना स्वयं मानव पर निर्भित करता है | इसके लिए उसे प्रयास करना पड़ता है | जो व्यक्ति इसके प्रति सचेत हों जाता है , वह असाधारण व्यक्तित्व का स्वामी हो जाता है अन्यथा सामान्य रूप में जीवन यापन कर व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर देता है |
जब – जब मनुष्य ने अपनी सम्भावनाओं को जागृत किया तब – तब ही न्यूटन तथा आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों का , तानसेन जैसे संगीतज्ञ का , सम्राट अशोक जैसे प्रशासक का , रामानुज जैसे गणितज्ञ का , मीरा व नामदेव जैसे संतों का , विवेकानंद व कबीर जैसे महात्माओं का एवं शहीद भगतसिंह व रामप्रसाद बिस्मिला जैसे क्रांतिकारियों का जन्म हुआ | ये वे नाम हैं जो इतिहास मैं अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित कर गए | इन्होने अपने अपने क्षेत्रों में कीर्तिमान स्तापित किया तथा यह दिखा दिया कि मानव चाहे तो सफलता के उच्च शिखर को स्पर्श कर अपना जीवन सार्थक कर सकता है , आवश्यकता है तो मात्र अपनी क्षमताओं कों जानने की, जगाने की , असंम्भव कुछ भी नही है |

मानव जीवन सागर की भांति विशाल एवं गहरा है जिसके गर्भ में अमूल्य रत्न छिपे हैं | इन्हें प्राप्त करने के लिए आपकों स्वयं अपने भीतर उतरना होगा , अपनी शक्तियों कों एकाग्र कर, अपनी क्षमताओ कों जागृत करना होगा | अपनी दुर्बलताओं , निराशाओं व अकर्मण्यता से बाहर निकलकर संकल्प लें तथा अपने जीवन को प्रयास में संलग्न हों जाएँ | शुभम अस्तु |

Wednesday, 31 August 2016

Om Chakra Meditation


CHAKRA MEDITATION
By internationally acclaimed
Meditation Guru,
“ARCHNA DIDI”
. . . the gateway to physical, mental & spiritual excellence!!!

OM-THE SOUND OF UNIVERSE !

There was a time when nothing existed and only still silent space was there. Then the vibration of Om was noticed which is known as vibration of creation. It is also known as the 'Anahat Nada’. 

Our mind is most powerful and beyond all physical existence. Thoughts are the seeds of creation. Whatever thoughts are united with Om in our mind can help to bring them into creation. 

Let us all awaken our dormant energies through the powerful "Om Chakra Meditation" and reach to a blissful state of purification of mind, body and soul.   

This unique workshop consists of powerful & practical meditation techniques drawn from ancient traditions, enriched by Meditation Guru-ARCHNA DIDI’s profound insight & knowledge that is relevant in the present era of intellectual evolution.

Some things in this world are beyond description, same is the experience of getting the opportunity to enter into the mystical state of ‘OM’ Chakra Meditation to explore the limitless divinity inside you with the grace of “SADGURU”. The best part is- it is beneficial for a beginner as well as a person who has been practicing meditation daily because in meditation only your devotion matters. Even a beginner can achieve great heights with his devotion & keenness to experience meditation.

So don’t miss this golden opportunity!

Some of the benefits of this unique “OM” CHAKRA MEDITATION WORKSHOP:-

1. Reduces stress level in all areas of your life.
2. A person's ability to concentrate and awareness are greatly enhanced. 
3. Improves Intuition, memory and Cognitive function.
4. Ensures better physical and sound mental health (relieves depression, tensions, worries, anxiety etc.) 
5. Makes one more relaxed, energetic, enlightened and positive.
6. Purification of Mind , Body and Soul.
7. Realization of true self.
8. Spiritual enhancement and unity with supreme power & many more. . .

  
Date:- Thu., 8th Sep. to Sun., 11th Sep. 2016

Time:- 07:00 am – 09:00 am

Venue:- Sports Facilities Complex, NOIDA STADIUM,
Sec-21A, Opp. Spice PVR,  NOIDA
(Entry Gate No.-4)


!!!! Limited Seats !!!!

Entry by registration only....

Free Introductory Session on
8th Sep.2016

 "There is no mistake in the world as big as the missed opportunity"

For Registration, Contact:-
Head Office:-9999-303130, 8800-750750, 9213-444499
Branch Office (Noida):-9891334100, 9599592366,9818778555

Regards
Team ARCHNA DIDI

CELEBRATING LIFE FOUNDATION
24, Park View Apartments, Plot - 16, Sector - 12,

Dwarka, Delhi -110078 (INDIA)


Sunday, 28 August 2016

यात्रा देवत्व की ओर

   
 हम अभी बाल्यावस्था से अनेक कथाएँ सुनते-पढ़ते आए है जिसमें देवताओं एवं असुरों के मध्य युद्ध का वर्णन मिलता है | इन कथाओं में असुरों की आसुरी वृति के वृतांत सुनकर व पढ़कर आश्चर्य होता है कि ऐसा निकृष्ट कार्य कोई कैसे कर सकता है | और जब कथा के अंत में वर्णन आता है कि अमुक देवता ने अमुक असुर का अंत कर दिया तो मन में प्रसन्नता का भाव उदय होता है |

    किंतु क्या आपने कभी इन कथाओं का गम्भीरता से चिन्तन-मनन किया है ? यदि गहराई से विचार करें तो आप पाएँगे कि ये देवता और असुर कोई और नहीं अपितु मनुष्य के मन में उठने वाली दैवी एवं आसुरी वृतियां ही है | गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने दैवी एवं असुरी सम्पदा का उल्लेख किया है | वस्तुतः देवता और राक्षस दोनों ही हमारे मन में सदैव उपस्थित रहते है | जीवन में प्रतिफल, प्रतिक्षण उनमे युद्ध चलता है | देवता से अर्थ है –हमारे मन की सात्विक वृति, सद्गुण, सुविचार एवं सुकर्म की भावना – पवित्रता, कर्मठता, उत्साह, सकारात्मकता, परोपकार, प्रेम, साधना, भक्ति, त्याग, शालीनता, शांति — यह हमारी दैवी सम्पदा है, हमारे भीतर की दैवी शक्ति है | इसके विपरीत असुर से तात्पर्य है – हमारे मन की तामसिक वृति, दुर्गुण, कुविचार एवं कुकर्म की भावना – आलस्य, प्रमाद, हिंसा, ईर्ष्या-द्वेष्, क्रोध, स्वार्थ, नकारात्मकता, घृणा, छल-कपट – यह आसुरी सम्पदा है, हमारे भीतर की आसुरी वृति है |

      जीवन के हर मोड़ पर, हर पढ़ाव पर, हर पल इनमें युद्ध होता है | जब दैवी वृति आसुरी वृति को परास्त कर उस पर हावी हों जाती है | तो हम सद्गुरु के, ईश्वर के निकट हो जाते है, उनकी कृपाओ के पात्र बन जाते है | किंतु जब आसुरी वृति दैवी वृति को परास्त कर देती है तो हम सद्गुरु से, ईश्वर से दूर हों जाते है |

       इसे उदाहरण से समझिए – उषाकाल की पवित्र बेला, आसमान में चंद्रमा व सितारों का साम्राज्य चल रहा है, भगवान भुवनभास्कर का साम्राज्य व्याप्त होने को तत्पर है, पक्षियों की आवाजें कर्णो में आने लगी है | मनुष्य की निंद्रा में अलसाई आँख खुलती है, भीतर से प्रभात का संकेत मिलता है और इसी क्षण देवताओं व असुरों का युद्ध शुरू हो जाता है | प्रभात के सौंदर्य का अपन दिव्य आकर्षण है, चारों ओर सात्विकता है, ध्यान, जप भक्ति की मधुर बेला है किंतु दूसरी ओर निंद्रा का अपना आकर्षण है | अलसाई आँखे क्षण भर को खुलती है, फिर बंद हों जाती है | मन में एक द्वंद का जन्म होता है | मन की दैवी वृति जागने के लिए प्रेरित करती है, शैया का त्याग कर, स्नान-ध्यान- पूजन के लिए प्रेरित करती है तो आसुरी वृति निंद्रा की ओर प्रेरित करती है, निंद्रा के आकर्षण में बाँधती है | कुछ क्षण तक यह युद्ध चलता है | जिस व्यक्ति में दैवी वृति विजयी होती है,वह शैया का त्याग कर उठ खड़ा होता है| इसके विपरीत जिस व्यक्ति में आसुरी वृति जीत जाती है वह आँखे खोलकर भी, भीतर के संकेतों को सुना-अनसुना कर पुन: निंद्रित हों जाता है | प्रभात का समय गवाँकर स्वास्थ्य व परमार्थ दोनों से ही हाथ धो बैठता है |

धन्य है वे मनुष्य जिनके भीतर के युद्ध में दैवी वृति की विजय होती है, वे उतरोतर परमात्मा के निकट होते जाते है |

किंतु जिनके भीतर आसुरी वृति की विजय होती है – वे भी दो प्रकार के मनुष्य होते है – एक वे जो इस विजय के पश्चात पश्चाताप करते है, स्वंय को दोष देते है, इसे अनुचित मानते है तथा भविष्य में दैवी वृति की विजय के लिए संकल्पबद्ध होते है – उनके उत्थान की संभावनाएं बनी रहती है | किंतु वे मनुष्य भी है जिन्हें इसका कोई पश्चाताप नहीं होता | वे आसुरी वृति की विजय में ही सतुंष्ट रहते है या कहना चाहिए कि उनके भीतर युद्ध का जन्म ही नहीं होता | वे आसुरी जीवन से ही संतुष्ट है | अविधा, अज्ञान, आलस्य, अशांति में ही संतुष्ट है | उनके उत्थान की संभावनाएं भी समाप्त हों जाती है |


किंतु मनुष्य को जीवन मिला है – देवता बनने के लिए, असुर बनने के लिए नहीं | अत: अपने भीतर के देवत्व को जागृत कीजिये |