Tuesday, 17 May 2016

     भक्ति  --- एक शून्य अवस्था

            भक्ति  --- एक शून्य अवस्था
भक्ति ईश्वर के प्रति तीव्र प्रेम है | ईश्वर प्रेम है और ईश्वर से प्रेम करना उसके लिए जो वह है - भक्ति होती है | भक्ति की कोई दशा नहीं होती है | हमें ईश्वर से कोई शर्त या मांग नहीं करनी चाहिए कि वह हमारी इच्छाओं की पूर्ती उसी तरह करे जिस तरह हम उन्हें पाना चाहते है, अन्यथा हम उसके प्रति सम्मान या प्रेम नहीं रखेंगे।
          भक्ति एक पवित्र भावना होती है | यह विशिष्ट होती है | यह उच्च स्तर की चेतना की ओर भक्त को उन्नत करती है | प्रबल भक्ति सर्वोच्च से स्वयं को समाहित करने की दशा होती है | भक्त उन सब से जुड़ जाता है | जो उसके पास होता है और अपनी आराधना की वस्तु जैसे ईश्वर के लिए कार्य करता है | जीवन में प्रत्येक कार्य उसके प्रिय ईश्वर से जुड़ा होता है | उसके जीवन का सबकुछ एक आराधना और पूजा ईश्वर के प्रति होती है | जब मस्तिष्क स्थिरता पूर्वक एवं लगातार ईश्वर पर केन्द्रित होता है - वह ईश्वर से एकाकार हो जाता है |
    भक्ति विश्वास से आरम्भ होती है | हमें प्रक्रति एवं संसार के आश्चर्य के बारे में सिखाया जाता है और इसलिए हम यह विश्वास रखते हैं कि ईश्वर अच्छा होता है | जैसे ही हम प्रक्रति एवं जीवन के चमत्कारों एवं आश्चर्यों से और अधिक ज्ञान अर्जित करते हैं हमारा विश्वास ईश्वर के प्रति आकर्षित करता है | हम उसकी क्ष्रमताओं के बारे में मंथन करते हैं और उपहार जो वह हम पर बरसाता है और हम उसके प्रति आकर्षित होते हैं |  हम स्वयं को ईश्वर से जुड़ा पाते हैं और हम उससे सर्वोच्च प्रेम से प्यार करते हैं
भक्त और भक्ति                                                                   
भक्त   शब्द अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग मायने रखता है। मंदिरों के दर्शनार्थियों से लेकर घरों में पूजा-आरती और अन्य रीति-रिवाजों का पालन करने वालों को आमतौर पर भक्त कहा जाता है। हो सकता है कि एक भक्त का बाहरी रूप इनमें से किसी तरह का हो, लेकिन एक भक्त की मूल प्रकृति क्या होती है?
भक्त होने का अर्थ किसी चीज की कल्पना करना नहीं है। भक्त होने का मतलब है, आप समझ चुके हैं कि आपके विचार, आपकी कल्पना, आपकी याद्दाश्त इस जगत में किसी काम की नहीं। भक्त होने का मतलब किसी मतिभ्रम का शिकार होना भी नहीं हैशिक्षा का मतलब सर्टिफिकेट हासिल करना नहीं है। इसका मतलब खुद का विकास करना है।
जब मैं भक्ति कहता हूं तो मैं ईश्वर के बारे में बात नहीं कर रहा हूं। मैं आपके शून्य हो जाने के बारे में बात कर रहा हूं। अगर आप शून्य की अवस्था में आ जाते हैं तो आप हर चीज को अपने भीतर समा सकते हैं, क्योंकि हर चीज शून्य में समा सकती है।
भक्त होने का मतलब किसी मतिभ्रम का शिकार होना भी नहीं है। भक्त होने का मतलब है कि वह अपने खुद के विचारों को, अपनी भावनाओं को कोई महत्व नहीं देता, क्योंकि वह जानता है कि वह कुछ भी नहीं है। वह किसी काम का नहीं है।इस जगत में हर चीज शून्य में ही समाई हुई है। जब आप शून्य हो जाते हैं तो आप हर चीज को अपने भीतर समा सकते हैं। तो भक्ति का अर्थ बस यही है।
यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमने एक ऐसे समाज का निर्माण किया है जहां विचार को ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। देखा जाए तो यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है। विचार तो बहुत छोटी सी घटना है। विचार तो आपकी एकत्र की हुई स्मृति से ही लगातार अपना भोजन ले रहे होते हैं। और जो कुछ भी आपने एकत्र किया है, वह चाहे जितना भी बड़ा हो, भले ही पूरा विश्व ज्ञान कोष अपने दिमाग में इकठ्ठा कर लिया हो, फिर भी यह बहुत छोटा है और आपके सभी विचार उस क्षुद्रता से आ रहे हैं जिसे आप ज्ञान कहते हैं।
भक्ति बस एक सहज बोध है
एक भक्त को बेशक किसी चीज को अलंकृत करना नहीं आता हो, लेकिन वह जानता है कि वह क्या है और यही जानना उसके लिए काफी है। चूंकि वह जानता है कि वह क्या है इसीलिए वह इतना खूबसूरत इंसान बन गया है, इतना जबर्दस्त आनंदमय प्राणी बन गया है, उसे अपने भीतर संगीत महसूस होता है, शानदार नृत्य महसूस होता है, क्योंकि उसके पास जीवन का बोध है, अहसास है। उसे इसे समझने की परवाह नहीं, क्योंकि वह इसकी विशालता को देख लेता है। वह अपने अस्तित्व की तुच्छ प्रकृति को भी देखता है। उसने इसे स्पर्श किया है, इसीलिए वह इतना पवित्र और भाग्यवान नजर आता है, इसलिए नहीं कि उसने सब कुछ जान लिया है। वह जानने की ज्यादा चिंता नहीं करता, क्योंकि वह भक्त है।
भक्ति और नम्रता
नम्रता भक्ति के लिए बहुत आवश्यक है।
सबमे प्रभु हैं ये बात संतो के श्री मुख से उपदेश सुन-सुनकर जब ह्रदय में बैठ जायेगी तब किसी के प्रति कठोरता हम कर ही नहीं पाएंगे। प्रभु को सहजता, सरलता, निर्मलता और नम्रता विशेष प्रिय है।नम्र और विनम्र व्यक्ति के प्रति तो दुनिया में भी सब सदभाव रखते हैं। व्यक्ति जितना गुणवान होगा उतना ही विनम्रवान भी होगा। ज्ञान सरलता की ओर ही ले जाता है। जो अकड़ पैदा करे वो तोअज्ञान है। नम्रता एक ऐसा दुर्लभ गुण है , जिसे हमें अपने जीवन में धारण करना है। नम्रता का अर्थ ऐसे भाव से जीना है कि हम सब एक ही परमात्मा की संतान हैं। जब हमें यह अहसास होता है कि प्रभु की नजरों में सब एक समान हैं , तो दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार नम्र हो जाता है। जब हमारा अहंकार खत्म हो जाता है तो हमारा घमंड और गर्व मिट जाता है। तब हम किसी को पीड़ा नहीं पहुंचाते। हम महसूस करते हैं कि प्रभु की दया से हमें कुछ उपहार मिले हैं और जो पदार्थ हमें दूसरों से अलग करते हैं , वे भी प्रभु के दिए उपहार हैं। अपने भीतर प्रभु का प्रेम अनुभव करने से हमारे अंदर नम्रता आती है। तब हर चीज में हमें प्रभु का हाथ नजर आता है। हम देखते हैं कि करनहार तो प्रभु हैं। इस तरह की आत्मिक नम्रता धारण करने से , धन , मान , प्रतिष्ठा , ज्ञान और सत्ता का अहंकार हमें सताता नहीं है। कहा जाता है कि जहां प्रेम है , वहां नम्रता है। हम जिनसे प्यार करते हैं , उन पर अपना रोब नहीं डालते और न ही उन पर क्रोध करते हैं। हमें उन लोगों के प्रति भी इसी तरह का व्यवहार करना चाहिए , जिनसे हम अपरिचित हैं। यह भी कहा जाता है कि जहां प्यार है , वहां नि : स्वार्थ सेवा का भाव होता है। हम जिनसे प्रेम करते हैं , उनकी सहायता करते हैं। क्योंकि सब में प्रभु की ज्योति निवास करती है।
भक्ति और सेवा        
      
  भक्ति शब्दों की रूप रचना भी उसके गहन और व्यापक स्वरूप को प्रकट करती है। भज्‌-सेवायाम्‌ धातु से क्तिन्‌ प्रत्यय होकर भक्ति शब्द बना है। मूल अर्थ है सेवा, सेवा का संबंध कर्म से है। मन में प्रेमाभक्ति हो तो कर्म में सेवाभक्ति की भावना स्वयं जाग जाएगी। मन प्रभु के नाम को जपता है तो तन सेवा भक्ति, कर्म में रत हो जाता है। चिंतन, मनन, भजन में सेवा नहीं रह सकती। सेवा का संबंध उन कर्मों से है जो अपने प्रिय प्रभु के लिए किए जाते हैं। कर्म करो और भगवान को अर्पित कर दो, अर्थात्‌ प्रत्येक कार्य को करते हुए मन में भावना बननी चाहिए कि मैं जो कर रहा हूं वह सब मेरे भगवान की सेवा भक्ति के निमित्त है।
सेवा संबंधी प्रत्येक कर्म को भगवान को समर्पित करने से प्राणी अहंकार से मुक्त हो जाता है। जो कुछ है उसका है, जो उसका है उसको समर्पित करो।
        ध्यान गुरु अर्चना दीदी कहती हैं
            सेवा का फ़ल: गुरू की कृपा        
                 
सेवा मे बहुत आनंद है। सेवा का दूसरा नाम है हनुमान ।
हनुमान जी ने सेवा करके ही तो पाया अपने राम को। हनुमान जी के अतिरिक्त सेवा का दुसरा पर्याय संसार मे हो नही सकता। सेवा का अभिप्राय एक ही शब्द है हनुमान। हनुमान जी का रूप क्या है। हनु कहते है मारने को और मान का मतलब मान ,जिन्होने अपने मन को मार दिया हो। जो अपने मान को मार के सेवा मे लग गये हो वही तो सच्चा सेवक होते है।मन प्रभु के नाम को जपता है तो तन सेवा भक्ति, कर्म में रत हो जाता है। चिंतन, मनन, भजन में सेवा नहीं रह सकती। सेवा का संबंध उन कर्मों से है जो अपने प्रिय प्रभु के लिए किए जाते हैं। कर्म करो और भगवान को अर्पित कर दो, अर्थात्‌ प्रत्येक कार्य को करते हुए मन में भावना बननी चाहिए कि मैं जो कर रहा हूं वह सब मेरे भगवान की सेवा भक्ति के निमित्त है ।
भक्ति और श्रेष्ठता  
                            
हममें से हर एक के भीतर एक राजा है , हर एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है और हम सबके भीतर आत्मा है जो कि परमात्मा का अंश है। जब हम इस दृष्टि से अपने सभी कार्य करते हैं कि हमें हर व्यक्ति को अपना सर्वश्रेष्ठ देना है , तब हम हर एक के अंदर बैठे परमात्मा को सम्मान देते हैं।
हे प्यारे प्रभु हम अपनी श्रेष्ठता को प्राप्त कर सके!
हे दयालु! हे कृपालु! हे परमेश्वर! हे ज्योतिर्मय! हे ज्ञानस्वरूप!
चरण-शरण में उपस्थित होकर हम आपके बच्चे आपसे प्रार्थना करते हैं!हमारा यह जीवन आपका दिया हुआ एक वरदान है!
श्रेष्ठ से श्रेष्ठ कर्म करने के लिए और जिंदगी की श्रेष्ठता को प्रकट करने के लिए इस संसार के कर्मक्षेत्र में हम लोग आए हैं!
हमारी बुद्धि अपनी श्रेष्टता को उपलब्ध हो! हमारे ह्रदय का प्रेम श्रेष्ठता तक पहुंचे!हमारे कर्म श्रेष्ठता से युक्त हों। हमारी आत्मा ऊंचाई को, महानता को विशेषता को प्राप्त हो सके! हम अपने अंदर के श्रेष्ठ तत्वों को बाहर निकाल सकें!जो कुछ दुनिया में करने के लिए जो क्षमताएं भगवान जी आपने हम को दी उन सभी क्षमताओं के सामर्थ्य का हम पूर्ण प्रयोग कर सकें!
इस जीवन का पूर्ण लाभ ले सकें हमें वो अवसर दीजिए, प्रेरणा और शक्ति दीजिए। हम अपने विकास तक पहुंचे,ऊंचाई तक पहुंचे! हम संसार की उलझनों में, दुखों में उलझ कर न रह जाएं!उनके पार जाएं,अपना उद्धार करें और जो पिछड़ गए हैं उनका भी हाथ पकड़ कर आगे लेकर जा सकें!हे प्यारे प्रभु इतनी कृपा जरूर करना कि हम अपने सतगुरु के बताये मार्ग पर चल सके!हमें आशीर्वाद दें!अपनी भक्ति, अपनी कृपा, अपने आशीर्वाद हमें प्रदान करें!यही विनती है प्रभु!
*ऊँ शान्तिः! शान्तिः!! शान्तिः!!!ॐ!सादर हरि ॐ जी!



7 comments:

  1. अधभुत लेख।जिसने अपने मान का हनन कर लिया ,वही भक्त होते हैं ।दीदी खुद अपने गुरु की उच्च कोटी की भक्त हैं ।मैं सव्यम को सोभाग्य शालिनी मानती हूँ ,कि ऐसे भक्त हमारी गुरू हैं ।

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  2. Devotion is a flame which when lighted in the heart of a normal person makes him priceless. Same is the work of modern mystic Dhyan Guru "ARCHNA DIDI" EHO With meditation and guidance creates a spark in the hearts of normal people making them aspirant and devotee. And one who becomes a devotee has now started moving in the path where there is no end of bliss and happiness. After attending sessions of meditation with Didi the spark of devotion again transform in to the sun of devotion which has no end of bliss.

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  3. सदगुरु"अर्चना दीदी" की कृपाओ से इस जीवन में भक्ति,सेवा,साधना और आनंद के पुष्प खिलने लगे है। दीदी की शरण में आकर जीवन धन्य हो गया।। कोटि कोटि प्रणाम।

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  4. नैन हीन को राह दिखाना गुरुवर
    पग-पग ठोकर खाऊँ मैं
    तुम्हरी नगरिया की कठिन डगरिया
    चलत चलत गिर जाऊँ मैं,
    चहुँ ओर मेरे घोर अंधेरा भूल ना जाऊँ द्वारा तेरा
    एक बार गुरुवर हाथ पकड़ लो
    मन का दीप जलाऊँ मैं
    नैन हीन को राह दिखाना गुरुवर पग-पग ठोकर खाऊँ मैं।

    हरि ॐ दीदीजी सादर चरण वंदन।

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  5. आपकी सेवा में मैं बहुत कुछ सीख रही हूँ और यह जानती हूँ आप अपनी कृपा हम सब भक्तों पर बनाये रखेगीं :)
    दीदी इसी तरह हमें सदैव अपने साथ राखिये और हमारी रक्षा करतीं रहें !!
    सादर प्रणाम मेरी *दीदी* :)
    आप हैं तो सब सही है अच्छा है :)

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  6. भक्ति और भावना का सही अर्थ मैंने गुरू मॉं से ही सीखा।
    कृपा कर एैसा आशिरवाद दें की इस राह पर और आगे जा सकूँ
    सादर चरण स्पर्श

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  7. Well said. A Guru does not conditions the mind of his disciple by the walls of his own idea but points out to them new and untried realms of contemplation. He tries to paint in words his blissful experience of the truth and the path that led him to it. It is the disciples that must reflect, meditate and realize. Sewa is rendered by the inspired devotees who come together as like minded souls. Service to the Guru is fruitful and rewarding if one performs it withe the heart and soul. Under the guidance of my Sadguru Archna didiji I have transformed my life to be a better person. Thank you didiji for everything. Hari om

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