*मकर संक्रांति पर्व का वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्व....!!*
भारत पर्वों एवं त्योहारों का देश है, यहाँ कोई भी महीना ऐसा नहीं हैं, जिसमें कोई न कोई त्यौहार न पड़ता हो, इसीलिए अपने देश में यह उक्ति प्रसिद्ध है कि 'सदा दीवाली साल भर, सातों बार त्यौहार'।
इन्हीं त्यौहारों में मकर संक्रांति भी है, जिसकी अपनी एक अलग ही विशेषता है एवं वैज्ञानिक आधार है।
हम जानते हैं कि ग्रहों एवं नक्षत्रों का प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।
इन ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति आकाशमंडल में सदैव एक समान नहीं रहती है, हमारी पृथ्वी भी सदैव अपना स्थान बदलती रहती है।
पृथ्वी की गोलाकार आकृति एवं अक्ष पर भ्रमण के कारण दिन-रात होते है
पृथ्वी का जो भाग सूर्य के सम्मुख पड़ता है वहाँ दिन होता है एवं जो भाग सूर्य के सम्मुख नहीं पड़ता है, वहाँ रात होती है, पृथ्वी की यह गति दैनिक गति कहलाती है।
किंतु पृथ्वी की वार्षिक गति भी होती है और यह एक वर्ष में सूर्य की एक बार परिक्रमा करती है।
पृथ्वी की इस वार्षिक गति के कारण इसके विभिन्न भागों में विभिन्न समयों पर विभिन्न ऋतुएँ होती है जिसे ऋतु परिवर्तन कहते हैं।
इस क्रम में सूर्य की स्थिति भी उत्तरायण एवं दक्षिणायन होती रहती है, जब सूर्य की गति दक्षिण से उत्तर होती है तो उसे उत्तरायण एवं जब उत्तर से दक्षिण होती है तो उसे दक्षिणायण कहा जाता है।
इस प्रकार पूरा वर्ष उत्तरायण एवं दक्षिणायन दो भागों में बराबर-बराबर बँटा होता है।
चूँकि १४ जनवरी को ही सूर्य प्रतिवर्ष अपनी कक्षा परिवर्तित कर दक्षिणायन से उत्तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करता है, अत: मकर संक्रांति प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही मनायी जाती है।
मकर संक्रांति के दिन सूर्य की कक्षा में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर हुआ परिवर्तन माना जाता है।*
मकर संक्रांति से दिन में वृद्धि होती है और रात का समय कम हो जाता है, इस प्रकार प्रकाश में वृद्धि होती है और अंधकार में कमी होती है।*
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