व्यक्ति का जीवन स्वयं में एक रहस्य है | सभी के मन में जीवन के विभिन्न आयामों को लेकर अनेक प्रश्न उठते हैं जिनके उत्तर हम बाहर खोजने का प्रयास करते हैं किंतु खोज नहीं पाते | वस्तुतः संसार उतना ही नहीं है जितना स्थूल आँखों से दिखाई देता है | स्थूल आँखों की पहुंच से परे भी संसार के अनेक रहस्य हैं | मनुष्य का स्थूल शरीर भी जो कुछ स्थूल आंखों से दिखाई देता है , मात्र उतना ही नहीं है | जिस प्रकार नन्हे से बीज में वृक्ष बनने की संभावना एवं शक्ति छिपी है , उसी प्रकार मनुष्य के भीतर भी अनेक शक्तियाँ छिपी हैं | स्थूल शरीर के भीतर सूक्ष्म शरीर तथा उससे जुड़े अनेक तत्व अत्यंत रहस्यात्मक हैं तथा इन रहस्यों के अनावरण का एक ही माध्यम है -------- ध्यान ।
ध्यान के पथ पर अग्रसर होते – होते वे रहस्य उद्घाटित होने लगते हैं तथा भीतर की शक्तियाँ जागृत होने लगती हैं | ध्यान की विशेष विधियों के अभ्यास से व्यक्ति को वह सुनाई देने लगता है जो कभी नहीं सुना ; वह दिखाई देने लगता है जो कभी नहीं देखा ; वह अनुभूति होने लगती है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की , किंतु यह स्थूल कर्णों , स्थूल आँखों तथा स्थूल शरीर का विषय नहीं है | यह भीतर का संसार है , सूक्ष्म संसार है।
जब ध्यान के माध्यम से व्यक्ति इसमें प्रवेश करता है तो आश्चर्य से भर जाता है कि भीतर का सौंदर्य , भीतर का संसार कितना मोहक , कितना आकर्षक है तथा कितना दिव्य है किंतु उसमें प्रवेश सम्भव है ---- सद्गुरु का हाथ थामकर , उनके मार्गदर्शन में उनके शरणागत होकर |
स्वप्रयास से साधक इसमें प्रवेश नहीं कर सकता | सद्गुरु का मार्गदर्शन ही उसका एकमात्र सम्बल होता है तथा इस मार्गदर्शन में निष्ठापूर्वक साधना करते – करते जब वह भीतर उतरता है तो आनंदविभोर हो उठता है | भीतर वे दृश्य दिखाई देते हैं जो स्थूल आँखों से देखे नहीं जा सकते, वह ध्वनि सुनाई देती है जो स्थूल कर्णों से कभी नहीं सुनी जा सकती | वे अनुभूतियाँ होती हैं जो शब्दों में वर्णित नहीं की जा सकतीं। |
बांसुरी के सात स्वरों की भांति ही सूक्ष्म शरीर में सात चक्र माने जाते हैं जिनमें से होकर विद्युत की भांति ध्यान की सूक्ष्म ऊर्जा ऊपर उठती है | ऊर्जा के यह सात केन्द्र , सात चक्र जब साधना द्वारा सक्रिय होते हैं , जागृत होते हैं तो साधक के समक्ष एक नवीन संसार का द्वार खुल जाता है ।चक्रों के सक्रियकरण के फलस्वरूप , भीतर छिपी क्षमताओं एवं सम्भावनाओं के जागृत होने से साधक के व्यक्तित्व में विशेष गुण प्रकट होने लगते हैं।
वह सांसारिक क्षेत्र में भी सफलता की ओर अग्रसर होने लगता है तथा आध्यात्मिक क्षेत्र में भी उत्तरोतर आगे बढ़ने लगता है , उसके सम्पर्क में आने वाले लोग उसके विलक्षण गुणों से प्रभावित होने लगते हैं |
ध्यान का यह संसार बहुत सुंदर , मोहक तथा अद्भुत है तथा मानव जीवन इसमें प्रवेश का स्वर्णिम अवसर है।
---- ध्यान गुरु अर्चना दीदी
No comments:
Post a Comment